Wednesday, 16 June 2021

TRIPHALA AN AYURVEIDIC MEDICINE.

 


Triphala, a herbal remedy (or polyherbal medicine) is a mixture of three dried fruits. In fact, Triphala literally means “three fruits” in Sanskrit. They are:

  • Amala (Emblica officinalis), also called Indian gooseberry
  • Bibhitaki (Terminalia bellirica)
  • Haritaki (Terminalia chebula)

The combination of these components working together is said to be more effective than if taken separately. 

This type of herbal medicine is popular in the practice of Ayurveda. Translating to “knowledge of life” in English, the goal of this 3,000-year-old practice is to provide you with recommended lifestyle changes combined with natural therapies to restore the balance of your mind, body, and spirit.


Ayurveda encourages multiple herb mixes like Triphala to treat a variety of different health issues and prevent chronic diseases. It has been touted for its ability to:

  • Support  in digestion and weight loss
  • Regulating blood sugar levels
  • Reducing inflammation
  • Preventing cancer
  • Lower cholesterol
  • Normalize blood pressure
  • Inhibit HIV.
  • Protect and improve liver function
  • Effective in reducing tumor also


  • As a precaution, you may want to avoid Triphala if you are taking chronic medications for diabetes and hypertension, since it may reduce their efficacy. Additionally, many of the compounds found in Triphala are metabolized by liver enzymes known as cytochrome P450 (CYP450.

Sunday, 9 May 2021

Mother's Day special.

 Wish all my friends .. followers...

Very happy Mother's Day.2021

Stay Home Stay Healthy & Happy



Wednesday, 3 February 2021

BEAUTY OF CITY IN NIGHT VIEW.


BEAUTY OF CITY IN NIGHT VIEW.

Beautiful scenery of Piragarhi crossing .



 After very long time......

We can see New Delhi....at Piragarhi crossing.... Heavy traffic, Shining Lights.

Thanks for your attention friends.


Wednesday, 21 October 2020

Sanatan Sanskar.....







Sanskar...


Jai Sri RAM

















































 


thanks friend for yout time and attention 
towards knowledge of 
our great scientific Sanskars....of Sanatan Dharm.

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Sunday, 30 August 2020

Thursday, 2 July 2020

Akhrot..Benifits---

Benifits of Akhrot :अखरोट दिल की सेहत के लिए भी अच्छा है. हृदय रोग मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में से एक है. हृदय का मुख्य कार्य पूरे शरीर में ऑक्सीजन से भरे रक्त के पर्याप्त प्रवाह को सुनिश्चित करना है. ऐसे में वह आहार लेना जरूरी है जो आपके दिल की सेहत के लिए अच्छा हो. अखरोट ऐसे ही फूड में से एक है. अखरोट  ।

दिल के लिए  फायदेमंद है अखरोट (Benefits of walnuts for heart health) 
आप जो खाते हैं वह न केवल आपके शरीर के वजन को प्रभावित करता है बल्कि आपके हृदय के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है. आपको अपने आहार में दिल के अनुकूल खाद्य पदार्थों को शामिल करना नहीं भूलना चाहिए. कुछ नट्स और बीज हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के साथ-साथ आपके संपूर्ण स्वास्थ्य को आश्चर्यजनक लाभ प्रदान कर सकते हैं. अखरोट दिल के अनुकूल नट्स में से एक है जिसे आप अपने आहार में शामिल कर सकते हैं. आइए समझते हैं कि अखरोट हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में आपकी मदद कैसे कर सकता है ।
अखरोट सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं, क्योंकि ये आवश्यक पोषक तत्वों और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरे होते हैं. वे बी विटामिन, फाइबर, मैग्नीशियम, और एंटीऑक्सिडेंट जैसे विटामिन ई से भरपूर होते हैं । अखरोट पौधे आधारित प्रोटीन के सबसे अच्छे स्रोतों में से एक है."
वजन कम करने, ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में भी फायदेमंद 
अखरोट सूजन को नियंत्रित करने, वजन घटाने, रक्तचाप को कम करने और आपको एंटीऑक्सीडेंट प्रदान करने में भी मदद करता है. ये सभी गुण एक साथ हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं ।
अखरोट में कैलोरी ज्यादा होती है. ऐसे में उन्हें संयम के साथ खाने की सलाह दी जाती है. अधिक मात्रा में सेवन से आप वजन बढ़ा सकते हैं. अखरोट के उच्च सेवन को दस्त से भी जोड़ा गया है." बहुत ज्यादा मात्रा में अखरोट खाने से दस्त या पेट से जुड़ी अन्य समस्याएं हो सकती हैं ।


 "रोजाना एक से दो नट्स सुबह-शाम या शाम के नाश्ते के रूप में खाए जा सकते हैं. अखरोट को खाली पेट न खाएं. अखरोट के तेल से पेट में जलन हो सकती है."
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Saturday, 20 June 2020

Yoga Best remedies.

कुंडलिनी योग का अभ्यास : 


कुंडलीनी के चक्र :
कु ंडलिनी शक्ति समस्त ब्रह्मांड में परिव्याप्त सार्वभौमिक शक्ति है जो प्रसुप्तावस्था में प्रत्येक जीव में विद्यमान रहती है। इसको प्रतीक रूप से साढ़े तीन कुंडल लगाए सर्प जो मूलाधार चक्र में सो रहा है के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है।




तीन कुंडल प्रकृति के तीन गुणों के परिचायक हैं। ये हैं सत्व (परिशुद्धता), रजस (क्रियाशीतता और वासना) तथा तमस (जड़ता और अंधकार)। अर्द्ध कुंडल इन गुणों के प्रभाव (विकृति) का परिचायक है।

कुंडलिनी योग के अभ्यास से सुप्त कुंडलिनी को जाग्रत कर इसे सुषम्ना में स्थित चक्रों का भेंदन कराते हुए सहस्रार तक ले जाया जाता है।

नाड़ी : नाड़ी सूक्ष्म शरीर की वाहिकाएँ हैं जिनसे होकर प्राणों का प्रवाह होता है। इन्हें खुली आँखों से नहीं देखा जा सकता। परंतु ये अंत:प्राज्ञिक दृष्टि से देखी जा सकती हैं। कुल मिलाकर बहत्तर हजार नाड़ियाँ हैं जिनमें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना सबसे महत्वपूर्ण हैं।

इड़ा और पिंगला नाड़ी मेरुदंड के दोनों ओर स्थित sympathetic और para sympathetic system के तद्नुरूप हैं। इड़ा का प्रवाह बाई नासिका से होता है तथा इसकी प्रकृति शीतल है। पिंगला दाहिनी नासिका से प्रवाहित होती है तथा इसकी प्रकृति गरम है। इड़ा में तमस की प्रबलता होती है, जबकि पिंगला में रजस प्रभावशाली होता है। इड़ा का अधिष्ठाता देवता चंद्रमा और पिंगला का सूर्य है।

यदि आप ध्यान से अपनी श्वांस का अवलोकन करेंगे तो पाएँगे कि कभी बाई नासिका से श्वांस चलता है तो कभी दाहिनी नासिका से और कभी-कभी दोनों नासिकाओं से श्वांस का प्रावाह चलता रहता है। इंड़ा नाड़ी जब क्रियाशील रहती है तो श्‍वांस बाई नासिका से प्रवाहित होता है। उस समय व्यक्ति को साधारण कार्य करना चाहिए। शांत चित्त से जो सहज कार्य किए किए जा सकते हैं उन्हीं में उस समय व्यक्ति को लगना चाहिए।

दाहिनीं नासिका से जब श्वांस चलती है तो उस समय पिंगला नाड़ी क्रियाशील रहती है। उस समय व्यक्ति को कठिन कार्य- जैसे व्यायाम, खाना, स्नान और परिश्रम वाले कार्य करना चाहिए। इसी समय सोना भी चाहिए। क्योंकि पिंगला की क्रियाशीलता में भोजन शीघ्र पचता है और गहरी नींद आती है।

स्वरयोग इड़ा और पिंगला के विषय में विस्तृत जानकारी देते हुए स्वरों को परिवर्तित करने, रोग दूर करने, सिद्धि प्राप्त करने और भविष्यवाणी करने जैसी शक्तियाँ प्राप्त करने के विषय में गहन मार्गदर्शन होता है। दोनों नासिका से साँस चलने का अर्थ है कि उस समय सुषुम्ना क्रियाशील है। ध्यान, प्रार्थना, जप, चिंतन और उत्कृष्ट कार्य करने के लिए यही समय सर्वश्रेष्ठ होता है।

सुषुम्ना नाड़ी : सभी नाड़ियों में श्रेष्ठ सुषुम्ना नाड़ी है। मूलाधार ( Basal plexus) से आरंभ होकर यह सिर के सर्वोच्च स्थान पर अवस्थित सहस्रार तक आती है। सभी चक्र सुषुम्ना में ही विद्यमान हैं। इड़ा को गंगा, पिंगला को यमुना और सुषुम्ना को सरस्वती कहा गया है।

इन तीन ना‍ड़ियों का पहला मिलन केंद्र मूलाधार कहलाता है। इसलिए मूलाधार को मुक्तत्रिवेणी (जहाँ से तीनों अलग-अलग होती हैं) और आज्ञाचक्र को युक्त त्रिवेणी (जहाँ तीनों आपस में मिल जाती हैं) कहते हैं।

चक्र : मेरुरज्जु ( spinal card) में प्राणों के प्रवाह के लिए सूक्ष्म नाड़ी है जिसे सुषुम्ना कहा गया है। इसमें अनेक केंद्र हैं। जिसे चक्र अथवा पदम कहा जाता है। कई ना‍ड़ियों के एक स्थान पर मिलने से इन चक्रों अथवा केंद्रों का निर्माण होता है। गुह्य रूप से इसे कमल के रूप में चित्रित किया गया है जिसमें अनेक दल हैं। ये दल एक नाड़ी विशेष के परिचायक हैं तथा इनका अपना एक विशिष्ट स्पंदन होता है जिसे एक विशेष बीजाक्षर के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है।

इस प्रकार प्रत्येक चक्र में दलों की एक निश्चित संख्‍या, विशिष्ट रंग, इष्ट देवता, तन्मात्रा (सूक्ष्मतत्व) और स्पंदन का प्रतिनिधित्व करने वाला एक बीजाक्षर हुआ करता है। कुंडलिनी जब चक्रों का भेदन करती है तो उस में शक्ति का संचार हो उठता है, मानों कमल पुष्प प्रस्फुटित हो गया और उस चक्र की गुप्त शक्तियाँ प्रकट हो जाती हैं।

( नोट :- मूलत: सात चक्र होते हैं:- मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार)

कुंडलिनी योग का अभ्यास :
सेवा और भक्ति के द्वारा साधक को सर्वप्रथम अपनी चित्तशुद्धि करनी चाहिए। आसन, प्राणायाम, बंध, मुद्रा और हठयोग की क्रियाओं के अभ्यास से नाड़ी शुद्धि करना भी आवश्यक है। साधक को श्रद्धा, भक्ति, गुरुसेवा, विनम्रता, शुद्धता, अनासक्ति, करुणा, प्रेरणा, विवेक, मानसिक ‍शांति, आत्मसंयम, निर्भरता, धैर्य और संलग्नता जैसे सद्गुणों का विकास करना चाहिए।

उसे एक के बाद दूसरे चक्र पर ध्यान करना आवश्यक है। जैसा कि पूर्व पृष्ठों में बताया गया है उसे एक सप्ताह तक मूलाधारचक्र और फिर एक सप्ताह तक क्रमश: स्वाधिष्ठान इत्यादि चक्रों पर ध्यान करना चाहिए।

विभिन्न विधियाँ : कुंडलिनी जागरण की विभिन्न विधियाँ हैं। राजयोग में ध्यान-धारणा के द्वारा कुंडलिनी जाग्रत होती है, जब कि भक्त से, ज्ञानी, चिंतन, मनन और ज्ञान से तथा कर्मयोगी मानवता की नि:स्वार्थ सेवा से कुंडलिनी जागरण करता है।

कुंडलिनी अध्यात्मिक प्रगति मापने का बैरोमीटर है। साधना का चाहे कोई मार्ग क्यों न हो, कुंडलिनी अवश्य जाग्रत होती है। साधना में प्रगति के साध कुंडलिनी सुषम्ना नाड़ी में अवश्य चढ़ती है।

कुंडलिनी का सुषुम्ना में ऊपर चढ़ने का अर्थ है चेतना में अधिकाधिक विस्तार। प्रत्येक केंद्र प्रयोगी को प्रकृति के किसी न किसी पक्ष पर नियंत्रण प्रदान करता है। उसे शक्ति और आनंद की प्राप्ति होती है।

कुंडलिनी जागरण के लिए कुंडलिनी प्राणायाम, अत्यन्त प्रभावशाली सिद्ध होते हैं। कुंडलिनी जब मूलाधार का भेदन करती है तो व्यक्ति अपने निम्नस्वरूप से ऊपर उठ जाता है। अनाहत चक्र के भेदन से योगी वासनाओं (सूक्ष्म कामना) से मुक्त हो जाता है और जब कुंडलिनी आज्ञाचक्र का भेदन कर लेती है तो योगी को आत्मज्ञान हो जाता है। उसे परमानंद अनुभव होता है।

पुस्तक : आसन, प्राणायाम, मुद्रा और बंध 
 Yaga Exercises For Health and Happiness


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